माँ तू ये सब कैसे कर लेती थी
व्यस्तता मे दिन भर हो उलझे तेरे केश
पर हर रोज मेरे केश सुलझाती थी
रहती हर वक्त खुद पीड़ा में
बिन पीड़ा के भी
मुझे तेल मला करती थी
खाना खाने की ना नुकर पर भी
रोज बड़े प्यार से खिलाती थी
दूध न पीने पर आइसक्रीम साथ लाती थी
खुद बिन साज सज्जा के
मुझे हर रोज राजकुमारी सी सँवारती थी
माँ तुझे कोई भले ना समझता था
पर कैसे तू पल पल मुझे समझती थी।
खुद पापा की मार सहती पर मुझे
उनके सिर्फ डाँट से भी बचाती थी
आँखों मे आँसू लिए मुझे
देख ना जाने कैसे तू मुस्काती थी
भले रात रात भर जगना पड़े तुझे
पर मुझे रोज समय से सुलाती थी
खुद अंदर ही अंदर कराहती थी तू
पर मुझे मीठे स्वर मे लोरी सुनाती थी
खुद का भले टूटा हो कोई ख्वाब
मुझे ख्वाब देखना बताती थी
दिल मे तेरे थे कड़वे आभास खुद के
पर मुझे दिल का मीठा एहसास सुनाती थी
सच कहूँ माँ मिल कर तुझसे
बस यही पुछती मैं
कि माँ
तू ये सब कैसे कर लेती थी।